हाल ही में डीपफेक तकनीक ने साइबर अपराधों का एक नया आयाम प्रस्तुत किया है, और इसका शिकार केवल राजनेता और सेलिब्रिटीज़ ही नहीं, बल्कि वैज्ञानिक और विशेषज्ञ भी हो रहे हैं। डीपफेक एक ऐसी तकनीक है जिसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का उपयोग कर किसी व्यक्ति के चेहरे, आवाज़ और हाव-भाव को इस हद तक नकली तरीके से प्रस्तुत किया जाता है कि इसे असली और नकली में फर्क करना मुश्किल हो जाता है।
डॉ. केगोमोत्सो माथाबे का अनुभव
दक्षिण अफ्रीका की यूरोलॉजिस्ट डॉ. केगोमोत्सो माथाबे ने जनवरी 2024 में एक ऐसे अनुभव का सामना किया जो किसी भी पेशेवर के लिए एक बुरा सपना हो सकता है। एक सहकर्मी ने उन्हें बताया कि उनका एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है, जिसमें वे एक नकली इरेक्टाइल डिसफंक्शन दवा का प्रचार कर रही हैं। यह वीडियो इतना विश्वसनीय था कि उनके परिवार और दोस्तों ने भी उनसे इस बारे में पूछताछ की।
यह वीडियो असल में एक डीपफेक था, जिसमें माथाबे का चेहरा और आवाज़ नकली रूप से तैयार किए गए थे। वीडियो का मकसद न केवल नकली दवा बेचना था, बल्कि उन लोगों से भी धोखाधड़ी करना था जो इस दवा को खरीदने के लिए अपने बैंकिंग विवरण साझा करते थे।
डीपफेक का व्यापक प्रभाव
भारत में भी इसी तरह के मामले सामने आए हैं, जहां मधुमेह विशेषज्ञ डॉ. विश्वनाथन मोहन को डीपफेक वीडियो में दिखाया गया, जिसमें उन्हें हिंदी में बोलते हुए दिखाया गया, जो वे वास्तव में नहीं बोलते। इन वीडियो का उद्देश्य लोगों को नकली हर्बल उत्पाद खरीदने के लिए प्रेरित करना था।
डीपफेक तकनीक न केवल व्यक्ति की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाती है, बल्कि पेशेवर करियर पर भी खतरा उत्पन्न करती है। वैज्ञानिक, जिनकी राय और अनुसंधान पर आम जनता विश्वास करती है, जब इस प्रकार के धोखाधड़ी का शिकार होते हैं, तो इसका असर उनके व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन पर पड़ता है।
इस समस्या से निपटने के उपाय
1.सोशल मीडिया पर सतर्कता: यदि किसी को डीपफेक वीडियो का शिकार बनाया जाता है, तो सबसे पहले सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर इसे रिपोर्ट करना चाहिए। ऐसे वीडियो को हटवाने के लिए तेजी से कार्रवाई जरूरी है, ताकि नुकसान को कम किया जा सके।
2.मूल वीडियो सहेजना: वैज्ञानिकों को अपने असली वीडियो क्लिप्स को सहेजने की आदत डालनी चाहिए। इससे डीपफेक वीडियो को डिबंक करने में मदद मिल सकती है।
3.कानूनी कार्रवाई: यदि डीपफेक वीडियो से गंभीर खतरा उत्पन्न होता है, तो पुलिस या कानूनी विशेषज्ञों से संपर्क करना आवश्यक है। कई मामलों में, यह आपराधिक धोखाधड़ी की श्रेणी में आता है, और दोषियों को सज़ा दिलाई जा सकती है।
निष्कर्ष
डीपफेक तकनीक के खतरे को कम नहीं आँका जा सकता। यह न केवल समाज में गलत जानकारी फैलाने का माध्यम बन गया है, बल्कि पेशेवरों के करियर और प्रतिष्ठा के लिए भी गंभीर खतरा है।कई देशों में ऐसे मामले को लेकर कानून मौजूद हैं, लेकिन यह हमेशा स्पष्ट नहीं होता कि इन मामलों में क्या कदम उठाया जाए। जैसे, दक्षिण अफ्रीका में, डॉ. माथाबे ने पुलिस में शिकायत दर्ज की, लेकिन उन्हें साइबर अपराध के तहत मामला दर्ज कराने में कठिनाई का सामना करना पड़ा। वहीं, ब्रिटेन में पिछले साल लागू किया गया ऑनलाइन सुरक्षा कानून भी इस समस्या से निपटने में नाकाफी साबित हो रहा है।
इस समस्या से निपटने के लिए सामूहिक जागरूकता और तकनीकी सतर्कता आवश्यक है। वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों को इस तकनीक के प्रति जागरूक रहना होगा और अपनी सुरक्षा के लिए आवश्यक कदम उठाने होंगे, ताकि वे ऐसे धोखाधड़ी का शिकार न बनें और उनकी प्रतिष्ठा सुरक्षित रहे।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें