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पर्यावरण के लिए पारंपरिक बीफ़ से 20 गुना अधिक हानिकारक है कृत्रिम माँस, जानिए कैसे?


आजकल कृत्रिम मांस का विचार काफी चर्चित हो रहा है। इसे जानवरों की कोशिकाओं से तैयार किया जाता है और इसे पारंपरिक मांस का एक बेहतर विकल्प माना जा रहा है। इसका मुख्य कारण यह है कि पारंपरिक मांस उत्पादन में अधिक भूमि, पानी, और चारा की आवश्यकता होती है और साथ ही इसमें जानवरों को मारने की भी जरूरत पड़ती है। लेकिन हाल ही में एक अध्ययन से पता चला है कि वर्तमान उत्पादन विधियों के साथ, कृत्रिम मांस का कार्बन फुटप्रिंट पारंपरिक बीफ़ से 20 गुना अधिक हो सकता है।


विश्व में मांस की खपत के कुछ आंकड़े:

विश्वभर में प्रतिदिन मांस की खपत का सटीक आंकड़ा विभिन्न स्रोतों और देशों के आधार पर अलग-अलग हो सकता है। हालाँकि, अनुमानित रूप से, पूरे विश्व में प्रतिदिन लगभग 350 मिलियन टन मांस की खपत होती है।

संयुक्त राज्य अमेरिका: प्रतिवर्ष प्रति व्यक्ति लगभग 100 किलोग्राम।

यूरोपीय संघ: प्रतिवर्ष प्रति व्यक्ति लगभग 70 किलोग्राम।

चीन: प्रतिवर्ष प्रति व्यक्ति लगभग 60 किलोग्राम।

भारत: प्रतिवर्ष प्रति व्यक्ति लगभग 4-5 किलोग्राम।


मांस की खपत के प्रकार:

बीफ़ (गाय का मांस): प्रमुख उपभोक्ता अमेरिका, ब्राजील, अर्जेंटीना।

पोर्क (सुअर का मांस): प्रमुख उपभोक्ता चीन,यूरोपीय संघ।

पोल्ट्री (चिकन): प्रमुख उपभोक्ता अमेरिका, चीन, ब्राजील।

मटन (भेड़ का मांस): प्रमुख उपभोक्ता भारत, न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया।

इन आंकड़ों को ध्यान में रखते हुए, यह स्पष्ट है कि मांस की खपत एक विशाल उद्योग है और इसकी मांग दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है। जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ रही है और जीवन शैली में बदलाव आ रहा है, मांस की खपत भी बढ़ रही है। इस माँग को पुरा करने के लिए कृत्रिम माँस का उत्पादन भी बढ़ रहा है। 

कृत्रिम मांस उद्योग अभी भी अपने प्रारंभिक चरण में है, और इसका उत्पादन बहुत सीमित मात्रा में हो रहा है। कुछ प्रमुख कंपनियां जैसे कि Memphis Meats, Mosa Meat, और Aleph Farms धीरे-धीरे अपने उत्पादन क्षमताओं को बढ़ा रही हैं, लेकिन अभी भी ये बाजार में व्यापक रूप से उपलब्ध नहीं है।


कृत्रिम मांस कैसे बनता है?


कृत्रिम मांस जानवरों की स्टेम कोशिकाओं को एक पौष्टिक शोरबा में बढ़ाकर बनाया जाता है। ये कोशिकाएं एक ढांचे के चारों ओर बढ़ती हैं और धीरे-धीरे मांस का रूप लेती हैं। इस प्रक्रिया में जानवरों की खेती और उनके वध की आवश्यकता नहीं होती, जिससे पर्यावरण को कम नुकसान पहुंचाने का दावा किया जाता है।


वर्तमान उत्पादन विधियों की समस्या

हालांकि, वर्तमान में कृत्रिम मांस उत्पादन की प्रक्रिया अत्यधिक ऊर्जा-गहन है। इस अध्ययन से यह स्पष्ट हुआ है कि यदि मौजूदा उत्पादन विधियों का बड़े पैमाने पर पालन किया जाता है, तो इससे ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन पारंपरिक बीफ़ उत्पादन से भी अधिक हो सकता है। ऊर्जा का अधिक उपयोग और कार्बन फुटप्रिंट का बढ़ना मुख्य चिंताएं हैं।


समाधान

अगर कृत्रिम मांस को पर्यावरण के अनुकूल विकल्प बनाना है, तो वैज्ञानिकों को उत्पादन विधियों को पूरी तरह से बदलने की जरूरत है। ऊर्जा की खपत को कम करने के उपाय खोजे जाने चाहिए ताकि यह सच में पर्यावरण के लिए लाभकारी साबित हो सके।


निष्कर्ष

कृत्रिम मांस एक नई और रोमांचक अवधारणा है, लेकिन इसे सही मायनों में पर्यावरण के अनुकूल बनाने के लिए अभी लंबा रास्ता तय करना बाकी है। वर्तमान उत्पादन विधियों के साथ, यह पारंपरिक मांस से अधिक नुकसानदेह हो सकता है। इसलिए, आवश्यक है कि इसके उत्पादन में ऊर्जा की खपत को कम किया जाए और इसे सच में एक टिकाऊ विकल्प बनाया जाए।


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