गर्भपात का अधिकार महिलाओं के स्वास्थ्य और स्वतंत्रता के दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह न केवल उनके शरीर के प्रति आत्मनिर्णय का अधिकार है, बल्कि उनके जीवन और स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए भी आवश्यक है। विभिन्न देशों में गर्भपात के अधिकारों को लेकर कानून और नीतियां भिन्न हो सकती हैं। भारत में भी गर्भपात के अधिकारों पर विशेष कानूनी प्रावधान और समाज में इसकी स्थिति पर विचार करना आवश्यक है।
गर्भपात का अधिकार: संवैधानिक परिप्रेक्ष्य
संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों में, व्यक्ति की स्वतंत्रता और गोपनीयता का अधिकार प्रमुख हैं। भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार प्रत्येक नागरिक को प्रदान किया गया है। इसमें महिलाओं के स्वास्थ्य, सुरक्षा और गरिमा की सुरक्षा भी शामिल है। गर्भपात का अधिकार, इन मौलिक अधिकारों का एक अभिन्न हिस्सा है क्योंकि यह महिलाओं को उनके शरीर और जीवन के प्रति आत्मनिर्णय का अधिकार देता है।
भारत में गर्भपात की कानूनी स्थिति
भारत में गर्भपात के अधिकार को कानूनी रूप से मान्यता मिली हुई है। 1971 में पारित मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (MTP) एक्ट ने गर्भपात को कुछ निश्चित परिस्थितियों में वैध घोषित किया। इस कानून के तहत, गर्भपात केवल पंजीकृत चिकित्सा प्रैक्टिशनर द्वारा और विशेष परिस्थितियों में ही किया जा सकता है। ये परिस्थितियाँ हैं:
1. जब गर्भावस्था का जारी रहना महिला के जीवन के लिए जोखिमपूर्ण हो सकता है।
2. जब गर्भावस्था से महिला का शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है।
3. जब भ्रूण में गंभीर असामान्यताएं पाई जाती हैं।
4. जब गर्भावस्था बलात्कार या गर्भनिरोधक विफलता का परिणाम होती है।
हाल की संशोधन और प्रगति
2021 में, MTP एक्ट में संशोधन किया गया, जिससे गर्भपात की समय सीमा बढ़ा दी गई और कुछ और परिस्थितियों में भी गर्भपात की अनुमति दी गई। अब, 20 सप्ताह तक की गर्भावस्था में गर्भपात के लिए एक चिकित्सक की मंजूरी की आवश्यकता होती है, जबकि 20 से 24 सप्ताह के बीच की गर्भावस्था में गर्भपात के लिए दो चिकित्सकों की मंजूरी आवश्यक होती है।
सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण
भारत में, गर्भपात के कानूनी अधिकार के बावजूद, सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण गर्भपात के मुद्दे को जटिल बना देते हैं। कई बार महिलाओं को सामाजिक दबाव और पारिवारिक दबाव के कारण गर्भपात के अधिकार का पूर्ण लाभ नहीं मिल पाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की कमी और जागरूकता की कमी के कारण भी महिलाओं को सही समय पर गर्भपात की सुविधाएं नहीं मिल पातीं है
निष्कर्ष
गर्भपात का अधिकार महिलाओं के स्वास्थ्य, सुरक्षा और गरिमा के लिए महत्वपूर्ण है। भारत में इस अधिकार को कानूनी मान्यता प्राप्त है, लेकिन सामाजिक और सांस्कृतिक बाधाओं के कारण इसे पूर्ण रूप से लागू करने में चुनौतियां हैं। महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करना और स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता बढ़ाना आवश्यक है ताकि वे अपने जीवन और स्वास्थ्य के प्रति आत्मनिर्णय का अधिकार प्राप्त कर सकें।
हाल ही में फ्रांस ने इसे हर स्थिति में व हर समय संवेधानिक अधिकार दिया उनका तर्क था की अगर माता तैयार नही है तो वो कैसे बच्चे को गरिमापूर्ण जीवन दे पायेगी।
गर्भपात का अधिकार संवैधानिक और कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है और इसके प्रति समाज में सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक है। महिलाओं के स्वास्थ्य और स्वतंत्रता के प्रति सम्मान और समर्थन प्रदान करना हमारा कर्तव्य है।
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