सरोगेसी, आधुनिक चिकित्सा विज्ञान का एक ऐसा चमत्कार है जिसने न केवल निःसंतान दंपत्तियों के जीवन में खुशियों के रंग भरे हैं, बल्कि मातृत्व की नई परिभाषा भी दी है। सरोगेसी की प्रक्रिया में एक महिला (सरोगेट माँ) किसी अन्य दंपत्ति के लिए गर्भ धारण करती है और बच्चे को जन्म देती है। यह उन दंपत्तियों के लिए एक वरदान साबित हो रही है जो किसी कारणवश स्वाभाविक रूप से संतान सुख नहीं पा सकते।
सरोगेसी का इतिहास
सरोगेसी का प्राचीन इतिहास है, लेकिन आधुनिक सरोगेसी की शुरुआत 1970 के दशक में हुई। 1980 में पहली बार अमेरिका में सरोगेसी से जन्मे बच्चे ने विज्ञान जगत में हलचल मचा दी। इसके बाद से दुनिया भर में सरोगेसी की लोकप्रियता बढ़ती चली गई।
सरोगेसी की प्रक्रिया
सरोगेसी की प्रक्रिया में कई चरण होते हैं:
1.इंविट्रो फर्टिलाइजेशन (IVF): इस प्रक्रिया में दंपत्ति के अंडाणु और शुक्राणु को प्रयोगशाला में मिलाकर भ्रूण तैयार किया जाता है।
2. भ्रूण स्थानांतरण: तैयार भ्रूण को सरोगेट माँ के गर्भाशय में स्थानांतरित किया जाता है।
3.गर्भधारण और प्रसव: सरोगेट माँ गर्भधारण करती है और निर्धारित समय पर बच्चे को जन्म देती है।
सरोगेसी के प्रकार
सरोगेसी दो प्रकार की होती है:
1.जेस्टेशनल सरोगेसी: इसमें सरोगेट माँ का जैविक संबंध बच्चे से नहीं होता। दंपत्ति के अंडाणु और शुक्राणु का उपयोग किया जाता है।
2.ट्रेडिशनल सरोगेसी: इसमें सरोगेट माँ का अंडाणु और दंपत्ति का शुक्राणु मिलाया जाता है। इसका उपयोग अब कम होता जा रहा है।
सरोगेसी के कानूनी पहलू
भारत में सरोगेसी का कानूनी पक्ष बहुत महत्वपूर्ण है। 2015 में भारत सरकार ने सरोगेसी (रेगुलेशन) बिल पेश किया, जिसे 2019 में संसद ने पारित किया। इसके अनुसार केवल भारतीय दंपत्ति ही सरोगेसी का लाभ उठा सकते हैं और उन्हें कानूनी प्रक्रिया का पालन करना अनिवार्य है। सरोगेसी का व्यावसायिक उपयोग निषिद्ध है, केवल परोपकारी (आल्ट्रुइस्टिक) सरोगेसी की अनुमति है।
सरोगेसी की सामाजिक और नैतिक चुनौतियाँ
सरोगेसी के बढ़ते प्रचलन के साथ कई सामाजिक और नैतिक सवाल भी उठे हैं।
1.सरोगेट माँ का शोषण: आर्थिक रूप से कमजोर महिलाओं का शोषण होने का खतरा रहता है।
2.भावनात्मक बंधन: सरोगेट माँ और बच्चे के बीच भावनात्मक जुड़ाव की संभावना होती है।
3. कानूनी विवाद: बच्चे की कानूनी पहचान और अभिभावकत्व के मामले में विवाद हो सकते हैं।
निष्कर्ष
सरोगेसी ने मातृत्व की परिभाषा को विस्तार दिया है और अनेक परिवारों को संपूर्णता प्रदान की है। हालांकि, इसके साथ जुड़े कानूनी, सामाजिक और नैतिक पहलुओं पर सतर्कता और संवेदनशीलता की आवश्यकता है। यदि सरोगेसी को सही ढंग से संचालित किया जाए, तो यह निःसंतान दंपत्तियों के लिए एक आशीर्वाद बन सकती है।
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